गुरुवार, 16 अगस्त 2018

दोहे 24/28

24
मन चाहत जा वाबरी ,मन चाहे ना होय ।
दास करे बस चाकरी ,दाता चाहे होय ।
25
चलता जा तू आप से, आपन को तू खोय ।
मिलता है सब भाग से, भाग विधाता होय ।
26
जीवन है सब राम का,दियो राम में खोय ।
मिलता है सब आप से,मांगत कछु ना कोय ।
27
रीती नैनन गाघरी , आस पिया की जोह ।
आएंगे फिर साँझ को,थाम प्रीत की डोर ।
28
 दास बन राम चरण का,चित्त समा आभास ।
 वो ही पार उतारते ,तू "निश्चल"कर विश्वास ।

... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
डायरी 6

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...