द्रुत विलबिंत छंद
111 211 211 212
लहर सागर पाद पखारती ।
पवन आँगन गाद बुहारती
किरण श्रेयस भोर निखारता।
खिल निशापति तेज दुलारता।
सु-तन यौवन बेष निखार ता ।
सु-घड़ ये तन देश सिंगार सा ।
सु-मधुता मन तेज विखार ता ।
वतन जीवन सेज सुहाग सा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
111 211 211 212
लहर सागर पाद पखारती ।
पवन आँगन गाद बुहारती
किरण श्रेयस भोर निखारता।
खिल निशापति तेज दुलारता।
सु-तन यौवन बेष निखार ता ।
सु-घड़ ये तन देश सिंगार सा ।
सु-मधुता मन तेज विखार ता ।
वतन जीवन सेज सुहाग सा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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