121 212 121 211 12
तलाश की तलाश को जरूरत रही ।
तलाश की यही यक़ीन सूरत रही ।
तलाशता रहा यक़ीन आप खुद जो ,
निग़ाह की यही हताश कूबत रही ।
ख़फ़ा नही यहां रहा इरादतन जो ,
अज़ाब सी यहां मिज़ाज सूरत रही ।
भरे कभी सुकून से बुतों पर जो ,
अश्क़ सभी रंग निखार मूरत रही ।
ढंकी सभी निग़ाह आज हिजाब जो ,
हुस्न अदा फ़िज़ा बिखेर नियत रही ।
नक़ाब में निग़ाह को छुपाकर चला ,
निग़ाह को निग़ाह की यु चाहत रही ।
मिटा रहा निशान आदमीयत जो ,
नही उसे ईमान आज आदत रही ।
मिला तभी यहीं मिला जुदा कब मैं ,
चला नही यही मिज़ाज "निश्चल" यही ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@.
तलाश की तलाश को जरूरत रही ।
तलाश की यही यक़ीन सूरत रही ।
तलाशता रहा यक़ीन आप खुद जो ,
निग़ाह की यही हताश कूबत रही ।
ख़फ़ा नही यहां रहा इरादतन जो ,
अज़ाब सी यहां मिज़ाज सूरत रही ।
भरे कभी सुकून से बुतों पर जो ,
अश्क़ सभी रंग निखार मूरत रही ।
ढंकी सभी निग़ाह आज हिजाब जो ,
हुस्न अदा फ़िज़ा बिखेर नियत रही ।
नक़ाब में निग़ाह को छुपाकर चला ,
निग़ाह को निग़ाह की यु चाहत रही ।
मिटा रहा निशान आदमीयत जो ,
नही उसे ईमान आज आदत रही ।
मिला तभी यहीं मिला जुदा कब मैं ,
चला नही यही मिज़ाज "निश्चल" यही ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें