क्या खाएं कसमें अब आजादी की ।
हर दिन आतीं खबरें बर्वादी की ।
लुट रहीं मासूम मूक बधिर है ,
लहू लुहान हालात आज़ादी की ।
आश्रय दाता बन जाते जो ,
खाल नोचते वो ही छाती की ।
आज नही सुरक्षित बचपन ,
धूमिल मर्यादा हर खादी की ।
मूक नही हम बधिर नही हम ।
पर चुप हालात देखे बर्वादी की ।
स्वार्थ सजे हैं चेहरे चेहरे ,
निग़ाह झुकी है खुद्दारी की ।
क्या खाएं कसमें अब आजादी की ।
हर दिन आती खबरें बर्वादी की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
हर दिन आतीं खबरें बर्वादी की ।
लुट रहीं मासूम मूक बधिर है ,
लहू लुहान हालात आज़ादी की ।
आश्रय दाता बन जाते जो ,
खाल नोचते वो ही छाती की ।
आज नही सुरक्षित बचपन ,
धूमिल मर्यादा हर खादी की ।
मूक नही हम बधिर नही हम ।
पर चुप हालात देखे बर्वादी की ।
स्वार्थ सजे हैं चेहरे चेहरे ,
निग़ाह झुकी है खुद्दारी की ।
क्या खाएं कसमें अब आजादी की ।
हर दिन आती खबरें बर्वादी की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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