बुधवार, 15 अगस्त 2018

क्या खाएँ कसमे

क्या खाएं कसमें अब आजादी की ।
हर दिन आतीं खबरें बर्वादी की ।

 लुट रहीं मासूम मूक बधिर है ,
 लहू लुहान हालात आज़ादी की ।

 आश्रय दाता बन जाते जो ,
 खाल नोचते वो ही छाती की ।

 आज नही सुरक्षित बचपन  ,
 धूमिल मर्यादा हर खादी की । 

 मूक नही हम बधिर नही हम ।
 पर चुप हालात देखे बर्वादी की ।

 स्वार्थ सजे हैं चेहरे चेहरे ,
 निग़ाह झुकी है खुद्दारी की ।

क्या खाएं कसमें अब आजादी की ।
हर दिन आती खबरें बर्वादी की ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....

  

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