शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

सत्य धूप

सत्य धूप पर असत्य की छाया है ।
सांझ ने दिनकर को भरमाया है ।

  रीत रही रातें चंचल तारों से ,
  सांझ ढले चाँद नही आया है ।

 राखी भी अब रीत रही ,
 सावन ने ना झूला गाया है ।

 ठहरा सा एकाकी मन ,
 साथ नही अब साया है ।

 चलता है एक आस लिए ,
 क्षितिज तले धुंधली छाया है ।

 साँसों की आहट ने ,
 साँसों को ठहराया है ।

 जमते रक्त शिरा ने ,
 शांत हृदय तड़फाया है ।

 स्याह अंधेरा दूर तलक,
 भोर नजर नही आया है ।

  अंधकार के पीछे ,
 अंधकार फिर आया है ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(99)
Blog post 17/8/18

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