सत्य धूप पर असत्य की छाया है ।
सांझ ने दिनकर को भरमाया है ।
रीत रही रातें चंचल तारों से ,
सांझ ढले चाँद नही आया है ।
राखी भी अब रीत रही ,
सावन ने ना झूला गाया है ।
ठहरा सा एकाकी मन ,
साथ नही अब साया है ।
चलता है एक आस लिए ,
क्षितिज तले धुंधली छाया है ।
साँसों की आहट ने ,
साँसों को ठहराया है ।
जमते रक्त शिरा ने ,
शांत हृदय तड़फाया है ।
स्याह अंधेरा दूर तलक,
भोर नजर नही आया है ।
अंधकार के पीछे ,
अंधकार फिर आया है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(99)
Blog post 17/8/18
सांझ ने दिनकर को भरमाया है ।
रीत रही रातें चंचल तारों से ,
सांझ ढले चाँद नही आया है ।
राखी भी अब रीत रही ,
सावन ने ना झूला गाया है ।
ठहरा सा एकाकी मन ,
साथ नही अब साया है ।
चलता है एक आस लिए ,
क्षितिज तले धुंधली छाया है ।
साँसों की आहट ने ,
साँसों को ठहराया है ।
जमते रक्त शिरा ने ,
शांत हृदय तड़फाया है ।
स्याह अंधेरा दूर तलक,
भोर नजर नही आया है ।
अंधकार के पीछे ,
अंधकार फिर आया है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(99)
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