खो गए निग़ाह से अहसास दे कर ।
रात के साथ दिन की आस दे कर ।
खोजता रहा क़तरा क़तरा वो ,
जो ग़ुम हुआ आँख से खो कर ।
ना मिल सका समंदर से वो दरिया ,
आया था बड़ी दूर से जो बह कर ।
वो चलता था उजलों के साये में ,
खा बैठा रोशनियों से वो ठो कर ।
हंसता ही रहा हर हाल पर जो ,
देखता है आज अब वो रो कर ।
"निश्चल" ना चल रहा पर और आंगे ,
मंजिल मिले नही राह को खो कर ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.
Blog post 17/8/18
रात के साथ दिन की आस दे कर ।
खोजता रहा क़तरा क़तरा वो ,
जो ग़ुम हुआ आँख से खो कर ।
ना मिल सका समंदर से वो दरिया ,
आया था बड़ी दूर से जो बह कर ।
वो चलता था उजलों के साये में ,
खा बैठा रोशनियों से वो ठो कर ।
हंसता ही रहा हर हाल पर जो ,
देखता है आज अब वो रो कर ।
"निश्चल" ना चल रहा पर और आंगे ,
मंजिल मिले नही राह को खो कर ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.
Blog post 17/8/18
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