काल का प्रतिकार कर ,
आज से आज तक ।
मैं खींचता रहा लकीरें ,
रोशनी से अंधकार तक ।
तज सँग सितारों का ,
तम का प्रतिकार कर ।
चलता रहा वो चाँद भी ,
भोर को अपनी साँझ कर ।
जीत ना सका यूँ तो कभी ,
भाग्य से मैं हार कर ।
चलता रहा मैं सफर में ,
हर हार को स्वीकार कर ।
... विवेक दुबे''निश्चल''@....
Blog post 17/8/18
आज से आज तक ।
मैं खींचता रहा लकीरें ,
रोशनी से अंधकार तक ।
तज सँग सितारों का ,
तम का प्रतिकार कर ।
चलता रहा वो चाँद भी ,
भोर को अपनी साँझ कर ।
जीत ना सका यूँ तो कभी ,
भाग्य से मैं हार कर ।
चलता रहा मैं सफर में ,
हर हार को स्वीकार कर ।
... विवेक दुबे''निश्चल''@....
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