सोमवार, 13 अगस्त 2018

मित्र

सोम सी सुहृद प्यास है ।
प्रीत सी सहज धार है ।

मान का अतुल प्रान है ।
 ज्ञान का मधुर भान है ।

 गीत का तरल राग है ।
 साज का सरल तार है ।

    हर हार में जीत सा ,
  *सुहृद* सुखद प्रसाद है ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@..
मित्र
Blog post 13/8/18

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