बुधवार, 4 अप्रैल 2018

मुक्तक 2

तस्वीर भी       बोलती होती ।
 सीरत भी       खोलती होती ।
 न छुपते राज-ऐ-दिल कोई ,
 हर राज तस्वीर खोलती होती ।
.....
बात एक यही चुभती रही ।
निग़ाह एक वो झुकती रही ।
 तपिश न थी शबनम में कोई ,
 पर रात भर वो घुलती रही ।
.... 

मामला न था जीत का न हार का ।
 सवाल था बस एक इक़रार का ।
 रखे ज़वाब सारे सामने मैंने उसके ,
सवाल रहा फिर भी इख़्तियार का ।
.....

बार बार आजमाया उसने ।
 ख़ुदा नजर आया जिसमे ।
 बस रंज रहा इस बात का  ,
  नजरों से न गिराया उसने ।
   ... 
झाँकता रहा आईने में अपने ।
 बुनता रहा सुनहरे से सपने ।
 सजते आँख में मोती कुछ ,
 ढलक ज़मीं टूटते से सपने ।
 ...

लफ्ज़ वो दुआ सा क्यों लगता है ।
   मुझे वो ख़ुदा सा क्यों लगता हैं ।
    आता जो गुजर दूर से पास मेरे ,
  लफ्ज़ वो ठहरा सा क्यों लगता है ।
....

चलते जाना तू चलते जाना ।
पतझड़ में भी फूल खिलाना ।
 राह कठिन इस ज़ीवन वन की,
 ज़ीवन वन गुम हो न जाना ।
  ... 

शिकायत शराफत बनी अब तो ।
 अदावत इनायत बनी अब तो ।
 मिलते नही मुकाम रास्तो के ,
 रास्ते ही मंज़िल बनी अब तो ।
    ..
चलते जाना तू चलते जाना ।
पतझड़ में भी फूल खिलाना ।
 राह कठिन इस जीवन वन की,
 ज़ीवन वन गुम हो न जाना ।
  ... 
वक़्त ...
तू मुझसे,कब तक जीतेगा ।
 एक दिन तो ,तू भी रीतेगा ।
 समा काल के,गरल गाल में ,
 एक दिन तो ,तू भी बीतेगा ।
 ... 

  सफ़र-ऐ-तलाश हम ही ।
  सफर-ऐ-मुक़ाम हम ही ।
 रख निगाहों को आईने में,
  ख़्वाब-ऐ-ख़्याल हम ही ।
.... 
कुछ तो है जिस की पर्दा दारी है ।
 सबकी अपनी एक लाचारी है ।
 फांसले हैं फ़क़त दिलो में अपने ,
  यूँ तो दुनियाँ से अपनी यारी है ।
... 


  मोल न रहा मेरा कुछ इस तरह ।
 बेमोल कहा उसने कुछ जिस तरह ।
.
         ....विवेक दुबे"निश्चल"@..

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