रविवार, 1 अप्रैल 2018

कुछ पन्ने जीवन के

कुछ पन्ने जीवन के यहाँ हैं ।
 कुछ पन्ने ज़ीवन के वहाँ हैं ।
 लिख गया वो हर पल को,
 जीवन जाने कहाँ कहाँ है ।
          अब वो जर जर ज़रा है ।
          पतझड़ से पत्ता झड़ा है ।
         यूँ धरा पर आन पड़ा है ।
         रौंदता जिसे सारा जहां है ।
 वो भी कभी एक मिसाल था ।
 वो वट वृक्ष घना विशाल था ।
 रूठती उसकी अब धरा है ।
 सूखता सा वो धरा खड़ा है ।
         जकड़े थीं जो जड़ें जिसे,
         छोड़ती हैं वो अब उसे ।
        घेरती ज़रा जरा जरा है ।
        वो धरा पर अब धरा है ।
  साथ कल था अभिमान के,
 आज अभिमान भी तजा है ।
  बेचैन है मिलने को राख में ,
  धरा पर पड़ी शुष्क ज़रा है ।
        ...विवेक दुबे"निश्चल"© ...

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