कुछ पन्ने जीवन के यहाँ हैं ।
कुछ पन्ने ज़ीवन के वहाँ हैं ।
लिख गया वो हर पल को,
जीवन जाने कहाँ कहाँ है ।
अब वो जर जर ज़रा है ।
पतझड़ से पत्ता झड़ा है ।
यूँ धरा पर आन पड़ा है ।
रौंदता जिसे सारा जहां है ।
वो भी कभी एक मिसाल था ।
वो वट वृक्ष घना विशाल था ।
रूठती उसकी अब धरा है ।
सूखता सा वो धरा खड़ा है ।
जकड़े थीं जो जड़ें जिसे,
छोड़ती हैं वो अब उसे ।
घेरती ज़रा जरा जरा है ।
वो धरा पर अब धरा है ।
साथ कल था अभिमान के,
आज अभिमान भी तजा है ।
बेचैन है मिलने को राख में ,
धरा पर पड़ी शुष्क ज़रा है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"© ...
कुछ पन्ने ज़ीवन के वहाँ हैं ।
लिख गया वो हर पल को,
जीवन जाने कहाँ कहाँ है ।
अब वो जर जर ज़रा है ।
पतझड़ से पत्ता झड़ा है ।
यूँ धरा पर आन पड़ा है ।
रौंदता जिसे सारा जहां है ।
वो भी कभी एक मिसाल था ।
वो वट वृक्ष घना विशाल था ।
रूठती उसकी अब धरा है ।
सूखता सा वो धरा खड़ा है ।
जकड़े थीं जो जड़ें जिसे,
छोड़ती हैं वो अब उसे ।
घेरती ज़रा जरा जरा है ।
वो धरा पर अब धरा है ।
साथ कल था अभिमान के,
आज अभिमान भी तजा है ।
बेचैन है मिलने को राख में ,
धरा पर पड़ी शुष्क ज़रा है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"© ...
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