अब तो आँख आँख नीर बहाती है ।
ग़म के बादल से छाई अँधियारी है ।
टूट रहीं है सीमा पर डोरे जीवन की ,
दुश्मन की गोली चुपके से आ जाती है ।
राख हुए सपने यौवन मन के ,
डिग्री को दीमक खा जाती है ।
अहं भाव के मकड़ जाल में ,
मंदिर मस्ज़िद उलझीं बेचारी हैं ।
लिपट रहे अँधियारे उजियारों से ,
अपनो की अपनो से सौदेदारी है ।
गहन निशा हर दिन कुंठाओं की ,
दिनकर को भी ढँक जाती है ।
राह नही सूझे कोई अब तो ,
राहें राहों में उलझी जाती हैं ।
तारा भी न चमके भुंसारे का ,
निशा गहन की ऐसी सरदारी है ।
अब तो आँख आँख ...
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
ग़म के बादल से छाई अँधियारी है ।
टूट रहीं है सीमा पर डोरे जीवन की ,
दुश्मन की गोली चुपके से आ जाती है ।
राख हुए सपने यौवन मन के ,
डिग्री को दीमक खा जाती है ।
अहं भाव के मकड़ जाल में ,
मंदिर मस्ज़िद उलझीं बेचारी हैं ।
लिपट रहे अँधियारे उजियारों से ,
अपनो की अपनो से सौदेदारी है ।
गहन निशा हर दिन कुंठाओं की ,
दिनकर को भी ढँक जाती है ।
राह नही सूझे कोई अब तो ,
राहें राहों में उलझी जाती हैं ।
तारा भी न चमके भुंसारे का ,
निशा गहन की ऐसी सरदारी है ।
अब तो आँख आँख ...
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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