साया मचल रहा था ।
ज़िस्म पिघल रहा था ।
शबनम की चाह में ,
चाँद जल रहा था ।
टूटा सितारा आसमाँ से ,
ज़मीं को मचल रहा था ।
वो हालात थे जाने कैसे ,
वक़्त वक़्त को छल रहा था ।
परछाइयाँ भी अब तो ,
सूरज निगल रहा था ।
वो रात थी घनेरी ,
साया भी गुल रहा था ।
समंदर था साहिल की चाह में ,
"निश्चल" जलधि बदल रहा था ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
रायसेन (म. प्र.)
ज़िस्म पिघल रहा था ।
शबनम की चाह में ,
चाँद जल रहा था ।
टूटा सितारा आसमाँ से ,
ज़मीं को मचल रहा था ।
वो हालात थे जाने कैसे ,
वक़्त वक़्त को छल रहा था ।
परछाइयाँ भी अब तो ,
सूरज निगल रहा था ।
वो रात थी घनेरी ,
साया भी गुल रहा था ।
समंदर था साहिल की चाह में ,
"निश्चल" जलधि बदल रहा था ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
रायसेन (म. प्र.)
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