गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

गंगा

पतित पावनी निर्मल गंगा ।
मोक्ष दायनी उज्वल गंगा ।
उतर स्वर्ग आई धरा पर ,
शिव शीश धारणी माँ गंगा ।

जैसी तब बहती थी गंगा ।
रही नही अब वैसी गंगा ।
हिमगिरि से गंगा सागर तक ,
कल कल बहती माँ गंगा ।

सिकुड़ रही अब माँ गंगा ।
हो रही क्रुद्ध अब माँ गंगा।
और न कर प्रदूषित मुझे ,
बार बार चेताती माँ गंगा ।

छोड़ती वापस गन्दगी धरा पर ।
रौद्र रूप दिखती माँ गंगा ।
हो जाती प्रलयकारी सी ,
कहती रहने दो मुझे माँ गंगा ।
….. विवेक दुबे "निश्चल"©…..

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