उसको छोड़ चला था धीरे से वो ।
जिसके साथ न कोई बहाना था ।
करे प्रायश्चित अनचाही भूलों का ,
अब शूल उसे बस चढ़ जाना था ।
रीता था वो अन्तर्मन से धीरे धीरे ,
बाहर मन उसको बिसराना था ।
लगता पल भर में मिथ्या सब ,
खोज सत्य उसे अब लाना था ।
यक्ष प्रश्न बना खड़ा था जीवन ,
हल स्वयं से जिसका पाना था ।
उसको छोड़ चला था धीरे से वो ,
जिसके साथ न कोई बहाना था ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
Blog post 1/4/18
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