वो अनबोली बोली थी
वो नयनों की बोली थी ।
श्यामल सांझ घटा जो ,
सँग गगन के डोली थी ।
लरज रही शान्त पवन से ,
अधरों को न खोली थी ।
कोमल प्रीत मिलन की ,
कूक हृदय तन डोली थी ।
निहार रही तप्त धरा ,
अँखियाँ बदली ने न खोली थी ।
गिरतीं कुछ नेह बूंद धरा पर,
धरती की फैली झोली थी ।
वो अनबोली बोली थी ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
वो नयनों की बोली थी ।
श्यामल सांझ घटा जो ,
सँग गगन के डोली थी ।
लरज रही शान्त पवन से ,
अधरों को न खोली थी ।
कोमल प्रीत मिलन की ,
कूक हृदय तन डोली थी ।
निहार रही तप्त धरा ,
अँखियाँ बदली ने न खोली थी ।
गिरतीं कुछ नेह बूंद धरा पर,
धरती की फैली झोली थी ।
वो अनबोली बोली थी ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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