सफ़ल न हो सका मैं हालात से ।
लिपटा रहा विफ़लता के दाग से ।
जीत न सका जंग अल्फ़ाज़ की ,
हारता ही रहा मैं अपनी जात से ।
दिखाते जो आईना मुझे अक़्सर ,
दूर हैं क्यों निग़ाह-ऐ-ऐतवार से ।
छुपा कर रंजिशें दिल में अपने ,
मिलते रहे वो बड़े आदाब से ।
रंज न कर कोई तू ऐ "निश्चल" ,
हारते अपने अपनों के वार से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
लिपटा रहा विफ़लता के दाग से ।
जीत न सका जंग अल्फ़ाज़ की ,
हारता ही रहा मैं अपनी जात से ।
दिखाते जो आईना मुझे अक़्सर ,
दूर हैं क्यों निग़ाह-ऐ-ऐतवार से ।
छुपा कर रंजिशें दिल में अपने ,
मिलते रहे वो बड़े आदाब से ।
रंज न कर कोई तू ऐ "निश्चल" ,
हारते अपने अपनों के वार से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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