भटका चलते चलते ज़ीवन की गलियों में।
खोज रहा खुद को मैं मन की गलियों में।
जटिल बड़ी भूल भुलैया इस ज़ीवन की ,
कैसे गुजरुँ जीवन की उलझी गलियों में।
प्रश्न यही एक आता हर चौराहे पर,
कब तक गुजरुँ फिर इन गलियों में ।
आता जाता फिर मुड़ मुड़ जाता ,
आंत हीन जीवन की गलियों में।
भटका चलते चलते...
..."विवेक दुबे"निश्चल"@..
खोज रहा खुद को मैं मन की गलियों में।
जटिल बड़ी भूल भुलैया इस ज़ीवन की ,
कैसे गुजरुँ जीवन की उलझी गलियों में।
प्रश्न यही एक आता हर चौराहे पर,
कब तक गुजरुँ फिर इन गलियों में ।
आता जाता फिर मुड़ मुड़ जाता ,
आंत हीन जीवन की गलियों में।
भटका चलते चलते...
..."विवेक दुबे"निश्चल"@..
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