मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

यह नजरिये की बात है

   यह नजरिये की बात है ।
    सुबह आती रात बाद है ।

    खोजते चाँदनी सितारों में ,
    चाँद होता क्यूँ दाग़दार है ।
     ..
  रोशन रहे उजाले  सभी के लिए ,
  अंधेरों का कोई क्यूँ राजदार है ।

  चली थी हवा घटाओं के लिए ।
 चरागों को बुझाने में नहीं हाथ है ।

  छूटा साहिल मौजों की चाह में ,
  डुबाने में साहिल नहीं साथ है ।

   न जा दूर मौजों में दरिया की,
   समंदर भी अब यहीं पास है ।

  रहा बे-निग़ाह निग़ाह में रहकर ,
  "निश्चल'' जमाने का यही राज है ।

   ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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