मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

उसने जो देखा

  
 उसने जो देखा निग़ाह से ।
 सब छिन गया जुबां से ।
  
            ख़ामोश हुए अल्फ़ाज़ भी ,
            होकर ख़ामोश निग़ाह के । 

  बे-लफ्ज़ हुआ रिंद भी ,
 आकर उस मयकदा से ।

             न थी नज़्र मय फिर भी ,
             मदहोश हुआ निग़ाह से ।

  
खेलकर जज़्बात से भी ,
 इख़्तियार थे वो वफ़ा से ।

              उसने जो देखा निग़ाह से ।
              सब छिन गया जुबां से ।

   .... विवेक दुबे"निश्चल"@....
  
  

   

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