मासूमियत खोजता यहां वहां
वो खो गई आज जाने कहाँ ।
ढोये बोझ किताबों के ।
लाले पड़े रोजगारों के ।
मासूम मगर बहुत है आज भी ।
भागता रोटी के पीछे आज भी ।
रोता नही है आज बस अब ।
अश्क़ पी भूख मिटाता है अब ।
अबोध नही रहा वक़्त के साथ आज ।
पढ़ा लिखा नोजवान है वो अब आज ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
वो खो गई आज जाने कहाँ ।
ढोये बोझ किताबों के ।
लाले पड़े रोजगारों के ।
मासूम मगर बहुत है आज भी ।
भागता रोटी के पीछे आज भी ।
रोता नही है आज बस अब ।
अश्क़ पी भूख मिटाता है अब ।
अबोध नही रहा वक़्त के साथ आज ।
पढ़ा लिखा नोजवान है वो अब आज ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें