काल के कपाल पे , मृत्यु के भाल पे ।
जन्म के श्रृंगार से , जीव के दुलार से ।
जीतता आप से , जीवन की ढाल से ।
हारता न हार से , जीत के प्रतिकार से ।
सृष्टि के स्वीकार से , अनन्त काल से ।
जीवन चलता नित , नए रूप श्रृंगार से ।
घटता बढ़ता प्रति दिन ,चँद्र सी चाल से ।
दमकता पौरुष ,भानू सा जीवन भाल पे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
जन्म के श्रृंगार से , जीव के दुलार से ।
जीतता आप से , जीवन की ढाल से ।
हारता न हार से , जीत के प्रतिकार से ।
सृष्टि के स्वीकार से , अनन्त काल से ।
जीवन चलता नित , नए रूप श्रृंगार से ।
घटता बढ़ता प्रति दिन ,चँद्र सी चाल से ।
दमकता पौरुष ,भानू सा जीवन भाल पे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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