मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

दमकता पौरुष

काल के कपाल पे , मृत्यु के भाल पे ।
 जन्म के श्रृंगार से , जीव के दुलार से ।
 जीतता आप से , जीवन की ढाल से ।
 हारता न हार से , जीत के प्रतिकार से । 
 सृष्टि के स्वीकार से , अनन्त काल से ।
 जीवन चलता नित , नए रूप श्रृंगार से ।
 घटता बढ़ता प्रति दिन ,चँद्र सी चाल से ।
 दमकता पौरुष ,भानू सा जीवन भाल पे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...