रविवार, 1 अप्रैल 2018

बृद्ध की व्यथा


 व्यथा उस अंतिम पड़ाव की ।
 चाह जिन्हें अपनो के चाह की। 
 कर हवन सारा यौवन तन,
 स्वप्न सलोनी हर बात की । 

  अभिलाषा बस संतानों की ,
  सुगम प्रगति की राहों की ।
  लगा दांव पर सब कुछ ,
  जीवन की नही परवाह की ।

 बीत गया तन आया चौथा पन,
 एक दृष्टि बची बस आस की ।
 बिसार दिया उस को अब, 
 भूले सब माया उस त्याग की ।

  शायद वो नियति थी इनके कल की ,
  एक यह नियति है इनके आज की ।
   चिंता है बस अब तो उनको ,
    उनके कल आते श्राद्ध की ।

  .....विवेक दुबे"निश्चल"@...

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