सोमवार, 9 अप्रैल 2018

ममता माँ की

 ममता जब जब भी जागी थी ।
 माता की टपकी छाती थी ।

 दे शीतल छाँया आँचल की ,
 माँ सारी रात जागी थी । 
   
  देख कर अपलक निगाहों से ,
  गंगा यमुना अबतारी थी ।
  
  स्तब्ध श्वास थी साँसों में ,
  अपनी श्वासों भी वारी थीं ।

   ..... विवेक दुबे ©.....
  
ब्लॉग पोस्ट 28/9/17
डायरी 1

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