ममता जब जब भी जागी थी ।
माता की टपकी छाती थी ।
दे शीतल छाँया आँचल की ,
माँ सारी रात जागी थी ।
देख कर अपलक निगाहों से ,
गंगा यमुना अबतारी थी ।
स्तब्ध श्वास थी साँसों में ,
अपनी श्वासों भी वारी थीं ।
..... विवेक दुबे ©.....
ब्लॉग पोस्ट 28/9/17
डायरी 1
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