बुधवार, 11 अप्रैल 2018

बंजारे सा

वो गाता है बंजारे सा ,गलियों में चौबारों में ।
छा जाता है सावन सा ,मन मस्त बहारों में ।

 रात भले ही तन्हा हो, दिन कटता राहो में ।
 गीत बांटती यादें उसकी, दर्द नही आहों में ।

 वो गाता है गीत सदा , बस खुशियों के ही ,
 उसकी आहें हरदम ,छुपी रहीं निगाहों में ।

 वो जीता औरों की,  खुशियों की ख़ातिर ।
 दर्द समेटे अपने ,    अपनी ही बाहों में ।

 वो गाता है बंजारे सा....
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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