वो गाता है बंजारे सा ,गलियों में चौबारों में ।
छा जाता है सावन सा ,मन मस्त बहारों में ।
रात भले ही तन्हा हो, दिन कटता राहो में ।
गीत बांटती यादें उसकी, दर्द नही आहों में ।
वो गाता है गीत सदा , बस खुशियों के ही ,
उसकी आहें हरदम ,छुपी रहीं निगाहों में ।
वो जीता औरों की, खुशियों की ख़ातिर ।
दर्द समेटे अपने , अपनी ही बाहों में ।
वो गाता है बंजारे सा....
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
छा जाता है सावन सा ,मन मस्त बहारों में ।
रात भले ही तन्हा हो, दिन कटता राहो में ।
गीत बांटती यादें उसकी, दर्द नही आहों में ।
वो गाता है गीत सदा , बस खुशियों के ही ,
उसकी आहें हरदम ,छुपी रहीं निगाहों में ।
वो जीता औरों की, खुशियों की ख़ातिर ।
दर्द समेटे अपने , अपनी ही बाहों में ।
वो गाता है बंजारे सा....
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें