नहीं तब कोई मेरी हस्ती थी ।
फिर भी जाने कैसी मस्ती थी ।
कितना सुगम था वो बचपन ,
बस अल्हड़पन वो मस्ती थी ।
फूल भरे खेतों की पगडंडी थीं ,
तितलियाँ भँवरों की सँगी थीं ।
उड़ते थे मदमस्त हवाओं सँग ,
मस्तानों की नादानों सी सँगी थीं।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ....
फिर भी जाने कैसी मस्ती थी ।
कितना सुगम था वो बचपन ,
बस अल्हड़पन वो मस्ती थी ।
फूल भरे खेतों की पगडंडी थीं ,
तितलियाँ भँवरों की सँगी थीं ।
उड़ते थे मदमस्त हवाओं सँग ,
मस्तानों की नादानों सी सँगी थीं।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ....
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