गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

नही तब कोई मेरी हस्ती थी

 नहीं तब कोई मेरी हस्ती थी ।
 फिर भी जाने कैसी मस्ती थी ।
 कितना सुगम था वो बचपन ,
 बस अल्हड़पन वो मस्ती थी ।

 फूल भरे खेतों की पगडंडी थीं ,
 तितलियाँ भँवरों की सँगी थीं  ।
  उड़ते थे मदमस्त हवाओं सँग ,
 मस्तानों की नादानों सी सँगी थीं।
   ..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ....

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