बुधवार, 11 अप्रैल 2018

सोया न सुबह की चाह में

      सोया न मैं सुबह की चाह में,
     इरादे कुछ और थे हालात के । 
     मैं क्या दूँ   तुझे तेरे वास्ते ,
     सो गए सितारे मेरे रात के ।

 कहकर संग दिल पुकारा उसने मुझे ।
 बुझते ही शमा मोम से मेरे हालत थे । 

 सूखा है दरिया आज भी जस का तस ,
 मेरे अश्क़ आज भी तो मेरे ही पास थे ।

 न लड़ा आज तक खुद ही खुद से ,
 जीतने के ज़ज्बात न मेरे पास थे । 

 दूर आवाज़ जाती तो जाती कैसे,
 पास मेरे ही तो मेरे ख्यालात थे ।

 चलता रहा न गिरने की ख़ातिर ,
  "निश्चल" कदमों के मेरे माप थे ।
  ..... विवेक दुबे "निश्चल"@..
गोष्ठी 17/1/18

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...