इस सभ्य समाज में ,
लुटती फिर नारी है ।
धृत राष्ट्र के राज में ,
दुर्योधन फिर भारी है ।
....
चलतीं चालें शकुनी की,
धर्मराज की लाचारी है ।
नजर झुकी बिदुर की ,
आँख भीष्म ने चुराई है ।
.....
धर्मराज के प्यादों ने ही ,
नारी की लाज़ उतारी है ।
आते नही अब मुरलीधर भी
आत्म दाह को चली नारी है ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
लुटती फिर नारी है ।
धृत राष्ट्र के राज में ,
दुर्योधन फिर भारी है ।
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चलतीं चालें शकुनी की,
धर्मराज की लाचारी है ।
नजर झुकी बिदुर की ,
आँख भीष्म ने चुराई है ।
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धर्मराज के प्यादों ने ही ,
नारी की लाज़ उतारी है ।
आते नही अब मुरलीधर भी
आत्म दाह को चली नारी है ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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