बुधवार, 11 अप्रैल 2018

वक़्त बड़ा परवान चढ़ा

वक़्त बड़ा परवान चढ़ा ।
 बिकने को ईमान चला ।
  देश भक्ति की कसमें खाता,
  चाल कुटिल शैतान चला ।

   लांघ मर्यादाएँ अपनी सारी ,
   हवस दरिंदा शैतान चला ।
   वो वासना भरा अतिचारी ,
   अबोध बालपन रौंद चला ।

   सुरक्षित रहे कहाँ अब नारी ,
   रिश्तों ने ही जब चीर हरा ।
   चुप क्यों सभा सद सभी ,
   दर्योधन फिर चाल चला ।

    अबला ही रही नारी बेचारी ,
    सबला कहता इंसान चला ।
    शैतानों के इस मरु वन में ,
     लाचार फिर इंसान खड़ा ।
  
   वक़्त बड़ा परवान चढ़ा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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