तपिश निग़ाह से पिघल उठे जो ।
शाम तले चराग़ हम जल उठे जो।
मैं भूलता नही इस अंदाज को ।
तुम चुपके से आते ख़्वाब जो ।
लौट आना है एक दिन बून्द तुझे ,
छोड़ा था समंदर-ऐ-अहसास जो ।
चमकता है आसमाँ पे सितारा नाज से ,
जमीं पे आएगा एक दिन हो ख़ाक जो।
टूटता है क्यों टूटकर दुनियाँ के तानो से ,
भरेगी दुनियाँ बाहों में वक़्त आएगा जो।
सुकूँ न खोज तू और कि निगाहों से ,
सुकूँ तुझे आएगा देखेगा आइना जो ।
क्यों अक़्स किसी और का बजूद में ,
बजूद तो बस यही"निश्चल" मैं हूँ जो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
शाम तले चराग़ हम जल उठे जो।
मैं भूलता नही इस अंदाज को ।
तुम चुपके से आते ख़्वाब जो ।
लौट आना है एक दिन बून्द तुझे ,
छोड़ा था समंदर-ऐ-अहसास जो ।
चमकता है आसमाँ पे सितारा नाज से ,
जमीं पे आएगा एक दिन हो ख़ाक जो।
टूटता है क्यों टूटकर दुनियाँ के तानो से ,
भरेगी दुनियाँ बाहों में वक़्त आएगा जो।
सुकूँ न खोज तू और कि निगाहों से ,
सुकूँ तुझे आएगा देखेगा आइना जो ।
क्यों अक़्स किसी और का बजूद में ,
बजूद तो बस यही"निश्चल" मैं हूँ जो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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