खुलकर भी वो खुलते नहीं ।
ज़ख्म दिल के पिघलते नहीं ।
यूँ तो तन्हां है वो बहुत मगर ,
आगाज महफ़िल में करते नही ।
बीता है वक़्त उन्हें मनाने में ।
दिल-ऐ-नगम उन्हें सुनाने में ।
दफ़न कर ज़ख्म-ऐ-दिल सारे ,
गीत खुशियों के हमे गाने में ।
न टूटा कोई सितारा उस फ़लक से ,
न आया काम मुराद पूरी कराने में ।
लो छुप गया वो चाँद भी अब ,
न रहा साथ मेरे अँधेरे मिटाने में ।
तर हूँ रोशनी दिन उजालों में ,
झुलसा "निश्चल" दिन के बिराने में ।
खुलकर भी वो खुलते नही ।
ज़ख्म दिल के पिघलते नही ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
ज़ख्म दिल के पिघलते नहीं ।
यूँ तो तन्हां है वो बहुत मगर ,
आगाज महफ़िल में करते नही ।
बीता है वक़्त उन्हें मनाने में ।
दिल-ऐ-नगम उन्हें सुनाने में ।
दफ़न कर ज़ख्म-ऐ-दिल सारे ,
गीत खुशियों के हमे गाने में ।
न टूटा कोई सितारा उस फ़लक से ,
न आया काम मुराद पूरी कराने में ।
लो छुप गया वो चाँद भी अब ,
न रहा साथ मेरे अँधेरे मिटाने में ।
तर हूँ रोशनी दिन उजालों में ,
झुलसा "निश्चल" दिन के बिराने में ।
खुलकर भी वो खुलते नही ।
ज़ख्म दिल के पिघलते नही ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
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