मन्दिर मस्जिद आरक्षण की ,
यह कैसी लाचारी है ।
राष्ट्र , समाज ,जाति पर ,
अब भी राजनीति ही भारी है ।
निकट चुनाव चले आते ,
तब याद हमारी आती है ।
वोटों के व्यापार में ,
पिसती जनता बेचारी है ।
होते बन्द , जन रंगे लहु से ,
जलती होली की लाचारी है ।
काट रहे अपने अपनों को ,
सत्ता की कैसी सौदेदारी है ।
मुद्दों से भटकी सत्ता ,
गद्दी भी व्यापारी है ।
धर्म ,जात की आड़ लिए ,
चुनाव समर की तैयारी है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
यह कैसी लाचारी है ।
राष्ट्र , समाज ,जाति पर ,
अब भी राजनीति ही भारी है ।
निकट चुनाव चले आते ,
तब याद हमारी आती है ।
वोटों के व्यापार में ,
पिसती जनता बेचारी है ।
होते बन्द , जन रंगे लहु से ,
जलती होली की लाचारी है ।
काट रहे अपने अपनों को ,
सत्ता की कैसी सौदेदारी है ।
मुद्दों से भटकी सत्ता ,
गद्दी भी व्यापारी है ।
धर्म ,जात की आड़ लिए ,
चुनाव समर की तैयारी है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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