सोमवार, 9 अप्रैल 2018

खूब अंदाज़


     खूब अंदाज़ रूठने मनाने का ।
     दिल जलाकर दिल लगाने का ।

    कहते वो रोएंगे न तेरे सामने हम ,
   बहाना तन्हाई में आँसू बहाने का ।

    हारकर अपने ही रंज से वो ,
   ढूंढता बहाना खुशी न पाने का ।

   रंगीनियाँ है तेरी महफ़िल में बहुत ,
   बहाना मेरी महफ़िल में न आने का ।

    रुख़सत हुआ कहकर वो दर से मेरे,
    इंतज़ार करना तू मेरे न आने का ।

   संज़ीदगी से चला वो सफ़र पर ,
   इरादा न था मंजिल न पाने का ।

   मैं दरिया हूँ बह जाऊँगा धीरे धीरे ,
  "निश्चल'' ख़्याल समंदर हो जाने का ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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