खूब अंदाज़ रूठने मनाने का ।
दिल जलाकर दिल लगाने का ।
कहते वो रोएंगे न तेरे सामने हम ,
बहाना तन्हाई में आँसू बहाने का ।
हारकर अपने ही रंज से वो ,
ढूंढता बहाना खुशी न पाने का ।
रंगीनियाँ है तेरी महफ़िल में बहुत ,
बहाना मेरी महफ़िल में न आने का ।
रुख़सत हुआ कहकर वो दर से मेरे,
इंतज़ार करना तू मेरे न आने का ।
संज़ीदगी से चला वो सफ़र पर ,
इरादा न था मंजिल न पाने का ।
मैं दरिया हूँ बह जाऊँगा धीरे धीरे ,
"निश्चल'' ख़्याल समंदर हो जाने का ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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