क्यों जज़्बात खो गए ,
क्यों यह हालत हो गए ।
डूब कर निगाहों में ,
निगाहों के पार हो गए ।
ज़ख्म गहरा न था कोई,
दर्द क्यों बे-राज हो गए ।
चिपट रोया न था दामन से,
तर क्यों दामन आज हो गए ।
फ़िसलती रही रेत बन्द मुट्ठी से ,
क्यों वक़्त में सुराख हो गए ।
हँसता है जमाना गैर की ख़ातिर,
"निश्चल"खुद क्यों लाचार हो गए ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
क्यों यह हालत हो गए ।
डूब कर निगाहों में ,
निगाहों के पार हो गए ।
ज़ख्म गहरा न था कोई,
दर्द क्यों बे-राज हो गए ।
चिपट रोया न था दामन से,
तर क्यों दामन आज हो गए ।
फ़िसलती रही रेत बन्द मुट्ठी से ,
क्यों वक़्त में सुराख हो गए ।
हँसता है जमाना गैर की ख़ातिर,
"निश्चल"खुद क्यों लाचार हो गए ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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