सोमवार, 9 अप्रैल 2018

पढ़ता जो नजर सा

पढ़ता जो नजर सा ,लफ्ज़ रूठ जाते ।
 पढ़ता जो लफ्ज़ सा ,इशारे रूठ जाते ।
 किताब खुली खुली बन्द सा जो मगर ।
  सफ़े सफ़े पर चिलमन सा क्यु असर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

 निगाह ने छुआ तुझको  ।
 महसूस क्या हुआ तुझको ।
 जज़्ब कर उस अस्र अक़्स को ,
   जो कहूँ मैं दुआ तुझको ।

 अस्र - समय
डायरी

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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