पढ़ता जो नजर सा ,लफ्ज़ रूठ जाते ।
पढ़ता जो लफ्ज़ सा ,इशारे रूठ जाते ।
किताब खुली खुली बन्द सा जो मगर ।
सफ़े सफ़े पर चिलमन सा क्यु असर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
निगाह ने छुआ तुझको ।
महसूस क्या हुआ तुझको ।
जज़्ब कर उस अस्र अक़्स को ,
जो कहूँ मैं दुआ तुझको ।
अस्र - समय
डायरी
पढ़ता जो लफ्ज़ सा ,इशारे रूठ जाते ।
किताब खुली खुली बन्द सा जो मगर ।
सफ़े सफ़े पर चिलमन सा क्यु असर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
निगाह ने छुआ तुझको ।
महसूस क्या हुआ तुझको ।
जज़्ब कर उस अस्र अक़्स को ,
जो कहूँ मैं दुआ तुझको ।
अस्र - समय
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