वो लफ़्ज़ कुछ यूँ बोलते थे ।
आहों के समंदर डोलते थे ।
आते थे तूफ़ां किनारों तक ,
टकरा साहिल को तोलते थे ।
ख़ामोश रहे किनारे हर बार ही,
तूफ़ां दर्द साहिल का बोलते थे ।
मुड़ते थे जब दरिया में अपने,
निशां अपने साहिल पे छोड़ते थे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ..
आहों के समंदर डोलते थे ।
आते थे तूफ़ां किनारों तक ,
टकरा साहिल को तोलते थे ।
ख़ामोश रहे किनारे हर बार ही,
तूफ़ां दर्द साहिल का बोलते थे ।
मुड़ते थे जब दरिया में अपने,
निशां अपने साहिल पे छोड़ते थे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ..
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