पथिक तुम बड़े चलो ।
नाद पथ चले चलो ।
भाव सींचते चलो ।
कुछ रीतते चलो ।
आकृति खींचते चलो ।
विकृति विलोपते चलो ।
अनुगुंजित साँझ तले ,
नव प्रभात ओर चलो ।
आशाओं के क्षितिज तले ,
अभिलाषाओं के उस ओर चलो ।
आकांक्षा नही प्रसाद प्राण में ,
आशाओं से तुम दीप जलो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 11/4/18
नाद पथ चले चलो ।
भाव सींचते चलो ।
कुछ रीतते चलो ।
आकृति खींचते चलो ।
विकृति विलोपते चलो ।
अनुगुंजित साँझ तले ,
नव प्रभात ओर चलो ।
आशाओं के क्षितिज तले ,
अभिलाषाओं के उस ओर चलो ।
आकांक्षा नही प्रसाद प्राण में ,
आशाओं से तुम दीप जलो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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