शनिवार, 14 अप्रैल 2018

मुक्तक .... आईना


  सफ़र-ऐ-तलाश हम ही ।
  सफर-ऐ-मुक़ाम हम ही ।
 रख निगाहों को आईने में,
  ख़्वाब-ऐ-ख़्याल हम ही ।
..
आइनों ने भी आईने दिखाए हमें । 
 यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
 दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
 तन्हा होने के अहसास कराए हमें। 
 ....
झाँकता रहा आईने में अपने ।
 बुनता रहा सुनहरे से सपने ।
 सजते आँख में मोती कुछ ,
 ढलक ज़मीं टूटते से सपने ।
 ...
अक़्स आईने में देखो यदा क़दा ।
 खुद को पहचानते रहो यदा कद ।
न ऐब लगाओ दुनियाँ को कभी ,
 ऐब अपने तो खोजो  यदा कदा ।
.....
काश! आइनों के लव न सिले होते
 काश! आईने भी बोल रहे होते
 तब,आईने में झांकने से पहले 
 हम,सौ सौ बार सोच रहे होते 
      ...
आइनों ने भी भृम पाले हैं ।
 रात से साये दिन के उजाले हैं ।
निग़ाह न मिला सका खुद से वो,
 ऐब दुनियाँ में उसने निकले हैं ।
  ....विवेक दुबे "निश्चल"©.....

आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
 जब आइनों में झाँके हैं।
 जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
.....
  हर चेहरा शहर में नक़ली निकला ।
  एक आईना ही असली निकला ।
  लिया सहारा  जिस भी काँधे का ,
   वो काँधा भी  जख़्मी निकला ।
... 
   ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...