रीत राग में उलझा मन ।
भोग विलास में लिपटा तन ।
प्रेम प्यार से उलझा मन ।
रूप श्रंगार में लिपटा तन ।
मन से मन की उलझन ।
तन से तन की अनबन ।
कैसे साधें तन मन को ,
हो जाएँ हरि दर्शन ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
भोग विलास में लिपटा तन ।
प्रेम प्यार से उलझा मन ।
रूप श्रंगार में लिपटा तन ।
मन से मन की उलझन ।
तन से तन की अनबन ।
कैसे साधें तन मन को ,
हो जाएँ हरि दर्शन ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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