यह धूप विरह की ,
श्यामल तन करती ।
नयन विलोकत गोरी ,
प्रियतम मन हरती ।
हृदय सेज विराजे साजन ,
सजनी स्वप्न सलोने गढ़ती ।
उड़ जा रे कागा मुंडेर से ,
यादों में रात नही अब कटती ।
आ जाएं अब साजन मेरे ,
नयन से आस बरसती ।
जेठ मास की तप्त धरा ,
धरती भी वर्षा को तरसी ।
यह धूप बिरह की ,....
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
श्यामल तन करती ।
नयन विलोकत गोरी ,
प्रियतम मन हरती ।
हृदय सेज विराजे साजन ,
सजनी स्वप्न सलोने गढ़ती ।
उड़ जा रे कागा मुंडेर से ,
यादों में रात नही अब कटती ।
आ जाएं अब साजन मेरे ,
नयन से आस बरसती ।
जेठ मास की तप्त धरा ,
धरती भी वर्षा को तरसी ।
यह धूप बिरह की ,....
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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