बुधवार, 11 अप्रैल 2018

न सुर है न ताल है

न सुर है न ताल है ।
 जिंदगी बेजार है ।
  बदला सा आज,
  हर किरदार है ।

  लिखी कहानी तब ,
  अपने हाथों से ।
  लिखता कोई और ,
 अब उपसंहार है ।

  बस हार ही हार है ।
  जीत का प्रतिकार है ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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