धीरे धीरे चलता वो
राह निगाहें भरता वो
दृश्य बदलते प्रतिपल में ,
दृश्य दृश्य से छलता वो ।
ललचाती उन छवियों में ,
भृमित भाव सा ढ़लता वो ।
ठोकर खाता राहों में ,
दृश्यों में यूँ उलझा वो ।
चलता मंजिल की ख़ातिर ,
बीच राह में यूँ भटका वो ।
भूला अपनी मंजिल को ,
"निश्चल" राहों पे चलता वो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
राह निगाहें भरता वो
दृश्य बदलते प्रतिपल में ,
दृश्य दृश्य से छलता वो ।
ललचाती उन छवियों में ,
भृमित भाव सा ढ़लता वो ।
ठोकर खाता राहों में ,
दृश्यों में यूँ उलझा वो ।
चलता मंजिल की ख़ातिर ,
बीच राह में यूँ भटका वो ।
भूला अपनी मंजिल को ,
"निश्चल" राहों पे चलता वो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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