तुम पूजो जिस पत्थर को पर विश्वास भरो ।
होगा जड़ भी चेतन छूकर आभास करो ।
मुड़ जातीं है धाराएँ भी सरिता की ,
इठलातीं धाराओं को बाहुपाश भरो ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"©....
होगा जड़ भी चेतन छूकर आभास करो ।
मुड़ जातीं है धाराएँ भी सरिता की ,
इठलातीं धाराओं को बाहुपाश भरो ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"©....
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