अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने।
खुद को बा-खूब सजाया उसने।
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अक़्स पर अक़्स चढ़ाया मैंने।
जितना चाहा वो दिखाया मैंने।
कुछ यूँ दुनियाँ की निग़ाहों से,
खुद को बा-खूब बचाया मैंने।
अक़्स अश्क़ में धुल गए ।
छाँव पलकों में जल गए ।
मंजिल पा जाने से पहले ,
पाँव छालों से मचल गए ।
....
अक़्स अश्क़ में धुल गए ।
छाँव पलकों में जल गए ।
मंजिल पा जाने से पहले ,
छाले कदमों में पल गए ।
....
कुछ यूँ ताक़ीद किया मुझको ,
कनीज़ से हूर किया मुझको ,
तराश कर अक़्स निगाहों से,
काँच कोहेनूर किया मुझको ,
...
आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
जब आइनों में झाँके हैं।
जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
खुद को आइना दिखाते हैं ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©...
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