सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

खुद को खूब सजाया उसने


अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने।
 खुद को बा-खूब सजाया उसने।
            .
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया मैंने।
जितना चाहा वो दिखाया मैंने।
  कुछ यूँ दुनियाँ की निग़ाहों से,
 खुद को बा-खूब बचाया मैंने।
            
अक़्स अश्क़ में धुल गए ।
 छाँव पलकों में जल गए ।
 मंजिल पा जाने से पहले ,
 पाँव छालों से मचल गए ।
.... 
 अक़्स अश्क़ में धुल गए ।
 छाँव पलकों में जल गए ।
 मंजिल पा जाने से पहले ,
 छाले कदमों  में पल गए ।

.... 

कुछ यूँ ताक़ीद किया मुझको ,
 कनीज़ से हूर किया मुझको ,
 तराश कर अक़्स निगाहों से,
 काँच कोहेनूर किया मुझको ,
   ...

आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
 जब आइनों में झाँके हैं।
 जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
   .... विवेक दुबे "निश्चल"©...


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