थक न तू , न हार तू ।
अपने हुनर को, न बिसार तू ।
होंसला कांधे से ,न उतार तू ।
तू चाँद है अम्बर का ।
तू सूरज है नील गगन का ।
तू झोंका है मस्त पवन का ।
तू नीर है सागर के तन का ।
चल चला चल , न रोक ,
तू अपने कदम को ।
मन्ज़िलें बेचैन तेरे आगमन को ।
....विवेक दुबे "निश्चल"@....
अपने हुनर को, न बिसार तू ।
होंसला कांधे से ,न उतार तू ।
तू चाँद है अम्बर का ।
तू सूरज है नील गगन का ।
तू झोंका है मस्त पवन का ।
तू नीर है सागर के तन का ।
चल चला चल , न रोक ,
तू अपने कदम को ।
मन्ज़िलें बेचैन तेरे आगमन को ।
....विवेक दुबे "निश्चल"@....
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