एक जलती सिगार ज़िन्दगी।
कश धुएँ सा गुबार ज़िन्दगी।
झड़ गई बस एक चुटकी में ,
हुई राख सी बेज़ार ज़िन्दगी ।
एक मेरा भी अंदाज़ है , राख होने का ।
सुलग आखरी कश तक,ज़िंदा रहने का ।
..
हराकर उम्र शौक पाले थे, बड़े शौक से ।
बुझे चिराग़ लड़ न सके,अंधेरों के दौर से।
…. विवेक दुबे"निश्चल" ©….
कश धुएँ सा गुबार ज़िन्दगी।
झड़ गई बस एक चुटकी में ,
हुई राख सी बेज़ार ज़िन्दगी ।
एक मेरा भी अंदाज़ है , राख होने का ।
सुलग आखरी कश तक,ज़िंदा रहने का ।
..
हराकर उम्र शौक पाले थे, बड़े शौक से ।
बुझे चिराग़ लड़ न सके,अंधेरों के दौर से।
…. विवेक दुबे"निश्चल" ©….
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें