अब भी कुछ बात अधूरी है ।
अपनों से अपनों की दूरी है।
साथ मिला है एक पथ का,
उड़ती पग पग धूल घनेरी है।
...विवेक दुबे©...
जाने क्यों बात अधूरी है ,
जाने क्यों कैसी दूरी है ।
खुलता नही वो दर"निश्चल",
जिस दर पर निग़ाह ठहरी है ।
...विवेक दुबे©...
तू कुछ पल ठहर तो सही।
कुछ वक़्त गुजार तो सही।
होगा फैसला खुद-बा-खुद,
क्या है सही क्या नही सही।
....विवेक दुबे©.....
अपनों से अपनों की दूरी है।
साथ मिला है एक पथ का,
उड़ती पग पग धूल घनेरी है।
...विवेक दुबे©...
जाने क्यों बात अधूरी है ,
जाने क्यों कैसी दूरी है ।
खुलता नही वो दर"निश्चल",
जिस दर पर निग़ाह ठहरी है ।
...विवेक दुबे©...
तू कुछ पल ठहर तो सही।
कुछ वक़्त गुजार तो सही।
होगा फैसला खुद-बा-खुद,
क्या है सही क्या नही सही।
....विवेक दुबे©.....
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