बरस उठे वो कारे कजरारे नैना ,
सावन के जैसे श्यामल से मेघा ।
हर्षित चितवन चित चोर भरी ,
बिजुरी चमकी ज्यों एक घड़ी ।
कैसे बीते सावन रातें बिरह भरी ।
आस लगाए नैनन द्वार खड़ी ।
तन मन बिरह अगन भरी ।
पिया मिलन की प्यास बड़ी ।
आएँ प्रीतम ज्यों घटा भरी ।
बरस जाएँ बन बुँदे बड़ी बड़ी ।
बस नभ देखे वो आस भरी ।
गोरी सोचे द्वार खड़ी खड़ी ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@......
सावन के जैसे श्यामल से मेघा ।
हर्षित चितवन चित चोर भरी ,
बिजुरी चमकी ज्यों एक घड़ी ।
कैसे बीते सावन रातें बिरह भरी ।
आस लगाए नैनन द्वार खड़ी ।
तन मन बिरह अगन भरी ।
पिया मिलन की प्यास बड़ी ।
आएँ प्रीतम ज्यों घटा भरी ।
बरस जाएँ बन बुँदे बड़ी बड़ी ।
बस नभ देखे वो आस भरी ।
गोरी सोचे द्वार खड़ी खड़ी ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@......
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