उसको रोका बहुत ,
उसको टोका बहुत ।
वो अपनी ज़िद को ,
उसूलों का नाम दिए जाएगा ।
अपनी नाकामियों का ,
हर इल्ज़ाम देता रहा ।
सोचा था तब न सही ,
अब तो सम्हल जाएगा ।
अब आज नही ,
कल सुधर जाएगा ।
कभी तो मेरे ,
सर से इलज़ाम उठाएगा।
सम्हल न वो ,
सुधर न वो ।
अपने ज़िद के ,
उसूलों को जिए जाएगा ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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