जाने पहचानों से पहचान बढे तो बेहतर है ।
अनजाने रिश्तों से चुभता बस नश्तर है।
रिश्तों की गलियों में नर्म सुनहले बिस्तर है।
अनजानी राहों पर काँटे बिखरे पत्थर हैं ।
अनन्त नील गगन पर देखो अनगिन तारे हैं ।
जगमग हो कर भी देखो कितने बेचारे हैं ।
इस दुनियाँ में रिश्ते जाने कितने सारे हैं।
पर जाने पहचानो ने ही रिश्ते स्वीकारे हैं।
.... दुबे विवेक"निश्चल"@......
अनजाने रिश्तों से चुभता बस नश्तर है।
रिश्तों की गलियों में नर्म सुनहले बिस्तर है।
अनजानी राहों पर काँटे बिखरे पत्थर हैं ।
अनन्त नील गगन पर देखो अनगिन तारे हैं ।
जगमग हो कर भी देखो कितने बेचारे हैं ।
इस दुनियाँ में रिश्ते जाने कितने सारे हैं।
पर जाने पहचानो ने ही रिश्ते स्वीकारे हैं।
.... दुबे विवेक"निश्चल"@......
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