छंटती है धुँध कोहरे हटते हैं।
खिली धूप से चेहरे निखरते हैं।
चलते छोड़कर राह पुरानी ,
नई राह होंसले आंगे बढ़ते हैं।
... विवेक दुबे "निश्चल"...
खिली धूप से चेहरे निखरते हैं।
चलते छोड़कर राह पुरानी ,
नई राह होंसले आंगे बढ़ते हैं।
... विवेक दुबे "निश्चल"...
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